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Showing posts from May, 2019

चर्चा में रहे लोगों से बातचीत पर आधारित साप्ताहिक कार्यक्रम

पूरी दुनिया में तेल खपत के मामले में भारत और चीन की हिस्सेदारी लगभ ग 17 प्रतिशत है, लिहाजा ऊर्जा की आपूर्ति के लिए तालमेल से उन्हें क़ीमतों पर अधिक लाभ मिलेगा. इसमें यदि जापान और दक्षिण कोरिया को भी मिला ले तो ये चार देश दुनिया भर में ख़रीदे जा रहे तेल का एक तिहाई हिस्सा आयात करते हैं. यानी यदि ये चारों देश मिल जाएं तो तेल की कीमतें तय करने को लेकर इनकी मांग और मज़बूत हो जाती है. पहली मई को इकॉनमिक टाइम्स अख़बार ने अपने संपादकीय में लिखा, "भारत और चीन के कारण वैश्विक तेल बाज़ार का ताक़तवर ढांचा एक बहुत बड़े और संभावित दूरगामी बदलाव के कगार पर हो सकता है." इसमें लिखा गया है कि 'ख़रीदारों का समूह' सौदेबाजी की ताक़त को नाटकीय रूप से आयातकों के पक्ष में झुका सकता है और इससे पूरी दुनिया में तेल की क़ीमतें भा रत और चीन के समीकरणों के अनुसार चलेगी." इतना ही नहीं, इस बार की पहल के सफल होने के बेहतर मौक़े हैं क्योंकि अमरीका में जिस तरह शेल एनर्जी में जबर्दस्त तरक्की हुई उसने ओपेके के प्रभाव को कम किया है. हिंदू बिज़नेस लाइन ने जून 2018 के अपने लेख में लिख